जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कभी-कभी भक्ति करने को मन नहीं करता? - प्रेरक कहानी
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अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
शनिदेव मैं सुमिरौं तोही। विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही॥ तुम्हरो नाम अनेक बखानौं। क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं॥
O Common Lord, each individual morning as being a rule I recite this Chalisa with devotion. Make sure you bless me in order that I could possibly carry out my materials and spiritual wishes.
अर्थ: हे शिव शंकर भोलेनाथ आपने ही त्रिपुरासुर (तरकासुर के तीन पुत्रों ने ब्रह्मा की भक्ति कर उनसे तीन अभेद्य पुर मांगे जिस कारण उन्हें त्रिपुरासुर कहा गया। शर्त के अनुसार भगवान शिव ने अभिजित नक्षत्र में असंभव रथ पर सवार होकर असंभव बाण चलाकर उनका संहार किया था) के साथ युद्ध कर उनका संहार किया व सब पर अपनी कृपा Shiv chaisa की। हे भगवन भागीरथ के तप से प्रसन्न हो कर उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति दिलाने की उनकी प्रतिज्ञा को आपने पूरा किया।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥ भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!...
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
संकट में पूछत नहिं कोई ॥ shiv chalisa lyricsl स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥